Wednesday, February 6, 2008

जादू -टोने जंतर -मंतर की नगरी में

जादू -टोने जंतर -मंतर की नगरी में,
हम पता पूछते घूम रहे अपने घर का/
तोता- मैना बनकर पिंजरों में बंद हुए,
जब भी महलों के दरवाजों के हाथ छुए/
अपने भविष्य की गिनी चुनी रेखाओं को,
मुंह खुला मिला सब तरफ एक ही अज़गर का/
दंगों वाली तक़दीर हमारे हिस्सों में,
काटे कर्फ्यू के दिन नफ़रत के किस्सों में/
सीधी-सीधी गलियों तक के तेवर बदले,
जब शुरू हुआ फिर खेल यहाँ बाजीगर का/
फिर राज नर्तकी नाचेगी गलियारों में,
कुछ आकर्षक मुद्राएँ लेकर नारों में/
सम्मोहन के मंत्रों-संकेतों में खोकर,
हम भूल जायेंगे घाव नुकीले पत्थर का /

Tuesday, February 5, 2008

सच न जाने इस हवा को किया हुआ /


सच न जाने इस हवा को किया हुआ /
तितलियों की देह पर चाकू चलाती यह हवा /
जुगनुओं को धर्म के रिश्ते बताती यह हवा/
किस दिशा ने इस हवा का तन छुआ / सच न जाने इस हवा को किया हुआ /
यह हवा जो कल फिरी हर एक माथा चूमती /
आज सडकों पर यहाँ कर्फ़्यु लगाती घूमती /
लग गयी इस को किसी की बद्दुआ / सच न जाने इस हवा को किया हुआ /
इस हवा ने कातिलाना दाँव कुछ ऐसे चले /
मार डाला भाईचारे को गली में दिन ढले /अब कहें मामू किसे किस को बुआ /सच न जाने इस हवा को किया हुआ /