जादू -टोने जंतर -मंतर की नगरी में, हम पता पूछते घूम रहे अपने घर का/ तोता- मैना बनकर पिंजरों में बंद हुए, जब भी महलों के दरवाजों के हाथ छुए/ अपने भविष्य की गिनी चुनी रेखाओं को, मुंह खुला मिला सब तरफ एक ही अज़गर का/ दंगों वाली तक़दीर हमारे हिस्सों में, काटे कर्फ्यू के दिन नफ़रत के किस्सों में/ सीधी-सीधी गलियों तक के तेवर बदले, जब शुरू हुआ फिर खेल यहाँ बाजीगर का/ फिर राज नर्तकी नाचेगी गलियारों में, कुछ आकर्षक मुद्राएँ लेकर नारों में/ सम्मोहन के मंत्रों-संकेतों में खोकर, हम भूल जायेंगे घाव नुकीले पत्थर का /
सच न जाने इस हवा को किया हुआ / तितलियों की देह पर चाकू चलाती यह हवा / जुगनुओं को धर्म के रिश्ते बताती यह हवा/ किस दिशा ने इस हवा का तन छुआ /सच न जाने इस हवा को किया हुआ / यह हवा जो कल फिरी हर एक माथा चूमती / आज सडकों पर यहाँ कर्फ़्यु लगाती घूमती /लग गयी इस को किसी की बद्दुआ / सच न जाने इस हवा को किया हुआ / इस हवा ने कातिलाना दाँव कुछ ऐसे चले / मार डाला भाईचारे को गली में दिन ढले /अब कहें मामू किसे किस को बुआ /सच न जाने इस हवा को किया हुआ /
नाम-रमेश गौतम सम्प्रति-अध्यापक (एस.बी.इंटर कॉलेज) शिक्षा - एम.ए हिन्दी साहित्य जन्म स्थान -जिला पीलीभीत,उत्तर प्रदेश (भारत) विभिन्न लघु कथाओं ,कविताओं की लघु पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं सम्पादन देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में लघु कथा,समीक्षा व नव गीतों का प्रकाशन।